जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि मंत्र सहित विस्तार से, ऐसे करें कान्हा की पूजा – पं वैभव शर्मा कोशिश
समाचार दृष्टि ब्यूरो/सराहां
इस साल कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार 6 सितम्बर 2023 बुधवार को गृहस्थियों के लिए और 7 सितम्बर 2023 गुरुवार सन्यासियों के लिए मनाया जाएगा। 6 सितंबर को श्री कृष्ण जन्माष्टमी अर्धरात्रि व्यापिनी अष्टमी तिथि,बुधवार ,रोहिणी नक्षत्र एवम वृषस्थ चन्द्रमा का दुर्लभ व पुण्यदायक योग बन रहा है माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इसलिये आज गृहस्थियों के लिए श्री कृष्णजन्माष्टमी का व्रत होगा क्योंकि निर्णय सिंधु के अनुसार आधी रात के समय रोहिणी नक्षत्र में यदि अष्टमी तिथि मिल जाएं तो उसमें श्री कृष्ण का पूजार्चन करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं
विष्णुरहस्य के अनुसार
अष्टमी कृष्णपक्षस्य रोहिणीऋक्षसयुंता l
भवेत्प्रोष्ठपदे मासि जयन्तीनाम सा स्मृता ll
कब मनाई जाएगी जन्माष्टमी?
हिंदू पंचांग के मुताबिक कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानि कि आठवें दिन मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार हर साल अगस्त या फिर सितंबर के महीने में जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। तिथि के मुताबिक जन्माष्टमी का त्योहार 6 सितम्बर 2023 बुधवार को मनाया जाएगा।
जन्माष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
जन्माष्टमी की तिथि: 6 सितम्बर 2023 बुधवार
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 6 सितम्बर 2023 बुधवार 15 बजकर 39
अष्टमी तिथि समाप्त: 7 सितम्बर 2023 गुरुवार 16 बजकर 15।
रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ: 6 सितम्बर 2023 बुधवार प्रातः 9 बजकर 20
रोहिणी नक्षत्र समाप्त: 7 सितम्बर 2023 गुरुवार 10 बजकर 25।
जन्माष्टमी का महत्व
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का देशभर में विशेष महत्व है। यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण को हरि विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है। देश के सभी राज्यों में इस त्योहार को अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है। इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सभी अपने आराध्य के जन्म की खुशी में दिन भर व्रत रखते हैं और कृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं। वहीं मंदिरों में झांकियां निकाली जाती हैं।
कैसें रखें जन्माष्टमी का व्रत?
जन्माष्टमी के अवसर पर श्रद्धालु दिन भर व्रत रखतें हैं और अपने आराध्य का आशिर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। जन्माष्टमी का व्रत रखने का अपना अलग विधान है। जो लोग जन्माष्टमी का व्रत रखना चाहते हैं, उन्हें जन्माष्टमी से एक दिन पहले केवल एक वक्त का भोजन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भक्त व्रत का संकल्प लेते हुए अगले दिन रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि के खत्म होने के बाद पारण यानी कि व्रत खोलते हैं।
जन्माष्टमी की पूजा विधि
जन्माष्टमी के दिन भगावन श्रीकृष्ण की पूजा करने का विधान है। अगर आप भी जन्माष्टमी का व्रत रख रहे हैं तो इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें।
– सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
– अब घर के मंदिर में कृष्ण जी या फिर ठाकुर जी की मूर्ति को पहले गंगा जल से स्नान कराएं।
– इसके बाद मूर्ति को दूध, दही, घी, शक्कर, शहद और केसर के पंचामृत से स्नान कराएं।
– अब शुद्ध जल से स्नान कराएं।
– रात 12 बजे भोग लगाकर लड्डू गोपाल की पूजा अर्चना करें और फिर आरती करें।
– अब घर के सभी सदस्यों को प्रसाद दें।
– अगर आप व्रत रख रहे हैं तो दूसरे दिन नवमी को व्रत का पारण करें।
जन्माष्टमी व्रत पूजा विधि मंत्र सहित विस्तार से, ऐसे करें कान्हा की पूजा
भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में भगवान जगन्नाथ श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कंस कारागार में वृष लग्न और रोहिणी नक्षत्र में हुआ। हर साल भगवान विष्णु के अष्टम अवतार के रुप में इस तिथि को भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। इनकी पूजा करते समय सबसे पहले इनकी प्रतिमा या तस्वीर के समक्ष हाथ में जल लेकर बोलें-
शुद्धि मंत्र:
ओम अपवित्रः पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोअपि वा। यः स्मरेत पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः।। जल को स्वयं पर और पूजन सामग्री पर छींटे लगाकर पवित्र करें।
हाथ में फूल लेकर श्रीकृष्ण का ध्यान करें :
वसुदेव सुतं देव कंस चाणूर मर्दनम्। देवकी परमानंदं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।। हे वसुदेव के पुत्र कंस और चाणूर का अंत करने वाले, देवकी को आनंदित करने वाले और जगत में पूजनीय आपको नमस्कार है।
जन्माष्टमी पूजन संकल्प मंत्र :
‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः कार्य सिद्धयर्थं कलशाधिष्ठित देवता सहित, श्रीजन्माष्टमी पूजनं महं करिष्ये।
हाथ में जल, अक्षत, फूल या केवल जल लेकर भी यह संकल्प मंत्र बोलें, क्योंकि बिना संकल्प किए पूजन का फल नहीं मिलता है।
भगवान श्रीकृष्ण आवाहन मंत्रः
जिन्होंने भगवान की मूर्ति बैठायी है उन्हें सबसे पहले हाथ में तिल जौ लेकर मूर्ति में भगवान का आवाहन करना चाहिए, आवाहन मंत्र- अनादिमाद्यं पुरुषोत्तमोत्तमं श्रीकृष्णचन्द्रं निजभक्तवत्सलम्। स्वयं त्वसंख्याण्डपतिं परात्परं राधापतिं त्वां शरणं व्रजाम्यहम्।। तिल जौ को भगवान की प्रतिमा पर छोड़ें।
आसन मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें- रम्यं सुशोभनं दिव्यं सर्वासौख्यकरं शुभम्। आसनं च मया दत्तं गृहाण परमेश्वर।। जल छोड़ें।
भगवान को अर्घ्य दें :
अर्घा में जल लेकर बोलें- अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह। करुणां करु मे देव! गृहाणार्घ्यं नमोस्तु ते।। जल छोड़ें।
आचमन मंत्र :
अर्घा में जल और गंध मिलाकर बोलें- सर्वतीर्थसमायुक्तं सुगन्धं निर्मलं जलम्। आचम्यतां मया दत्तं गृहत्वा परमेश्वर।। जल छोड़ें।
स्नान मंत्र :
अर्घा में जल लेकर बोलें- गंगा, सरस्वती, रेवा, पयोष्णी, नर्मदाजलैः। स्नापितोअसि मया देव तथा शांति कुरुष्व मे।। जल छोड़ें।
पंचामृत स्नान :
अर्घा में गंगाजल, दूध, दही, घी, शहद मिलाकर भगवान श्रीकृष्ण को यह मंत्र बोलते हुए पंचामृत स्नान कराएं- पंचामृतं मयाआनीतं पयोदधि घृतं मधु। शर्करा च समायुक्तं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम्।। भगवान को स्नान कराएं।
अर्घा में जल लेकर भगवान को फिर से एक बार शुद्धि स्नान कराएं।
भगवान श्रीकृष्ण को वस्त्र अर्पित करने का मंत्र :
हाथ में पीले वस्त्र लेकर यह मंत्र बोलें- शीतवातोष्णसन्त्राणं लज्जाया रक्षणं परम्। देहालअंगकरणं वस्त्रमतः शान्तिं प्रयच्छ मे। भगवान को वस्त्र अर्पित करें।
यज्ञोपवीत अर्पित करने का मंत्र:
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्। आयुष्मयग्यं प्रतिमुन्ज शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।। इस मंत्र को बोलकर भगवान को यज्ञोपवीत अर्पित करें।
चंदन लगाने का मंत्र:
फूल में चंदन लगार मंत्र बोलें- श्रीखंड चंदनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम्। विलेपनं सुरश्रेष्ठ चंदनं प्रतिगृह्यताम्।। भगवान श्रीकृष्ण को चंदन लगाएं।
भगवान को फूल चढाएंः
माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो। मयाआहृतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम्।। भगवान को फूल अर्पित करने के बाद माला पहनाएं।
भगवान को दूर्वा चढाएंः
हाथ में दूर्वा लेकर मंत्र बोलें – दूर्वांकुरान् सुहरितानमृतान्मंगलप्रदान्। आनीतांस्तव पूजार्थं गृहाण परमेश्वर।।
भगवान को नैवेद्य भेंट करेंः
इदं नाना विधि नैवेद्यानि ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि।
भगवान को आचमन कराएंः
इदं आचमनम् ओम नमो भगवते वासुदेवं, देवकीसुतं समर्पयामि।
इसके बाद भगवान को पान सुपारी अर्पित करके प्रदक्षिणा करें और यह मंत्र बोलें- यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च। तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे-पदे।।
सभी को श्री कृष्णजन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏